Kanwar Yatra 2024 rule controversy: आजाद हिन्दुस्तान में 29 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में अनुच्छेद 17 (प्रारूप अनुच्छेद 11) पर बहस शुरू हुई। इसमें अस्पृश्यता(छुआ-छूत) को समाप्त करने की बात कही गई। संपूर्ण संविधान सभा ने एक स्वर से इस अनुच्छेद का समर्थन किया। बाद में संविधान सभा ने 1950 में लागू हुए पूर्ण संविधान में अनुच्छेद 17 का हवाला देते हुए घोषणा की कि “अस्पृश्यता” को समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका पालन निषिद्ध(वर्जित) है।
क्या अनुच्छेद 17 में जाति भेदभाव के साथ धार्मिक आधार भी होना चाहिए?
‘अस्पृश्यता’ से उत्पन्न किसी भी प्रकार की अयोग्यता को लागू करना कानून के अनुसार दंडनीय अपराध होगा। लेकिन संविधान सभा में कुछ सदस्य ऐसे भी थे जो इस अनुच्छेद में संशोधन करना चाहते थे। उनमें से एक थे पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद। उन्होंने इस संशोधन को एक नए रूप में सभा के समक्ष प्रस्तुत किया और किसी भी रूप में इसका पालन करना कानून द्वारा दंडनीय बनाना चाहा। नजीरुद्दीन अहमद के संशोधन में अस्पृश्यता के संबंध में जाति के साथ-साथ धार्मिक आधार भी शामिल था। क्योंकि उन्हें संदेह था कि भविष्य में धार्मिक आधार पर अस्पृश्यता उभर सकती है। लेकिन प्रारूप समिति(Drafting Committee) के अध्यक्ष बी.आर. अंबेडकर ने न केवल इस संशोधन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, बल्कि इस संबंध में साथी सदस्य नजीरुद्दीन अहमद को कोई जवाब देने से भी इनकार कर दिया।
नजीरुद्दीन अहमद और बी.आर. अंबेडकर:
बी.आर. अंबेडकर को लगा होगा कि धार्मिक अस्पृश्यता को नहीं, बल्कि जाति के आधार पर अस्पृश्यता(भेदभाव) के उन्मूलन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो हजारों सालों से चली आ रही है। लेकिन नजीरुद्दीन अहमद की सोच निश्चित रूप से भविष्य की चिंता से जुड़ी थी। उनका डर भी जायज था। शायद उन्हें पता था कि अगर भविष्य में ऐसा कुछ हुआ, तो राष्ट्रीय एकता और अल्पसंख्यक दोनों सुरक्षित रहेंगे। अब लगता है कि अनुच्छेद-17 का विस्तार करके उसमें धार्मिक अस्पृश्यता को शामिल करने का समय आ गया है।
क्यों चर्चा में आया अनुच्छेद 17?
हाल ही में हुई एक घटना अनुच्छेद 17 के विस्तार की वकालत करती है। मुजफ्फरनगर(Uttar Pradesh) के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक(SSP) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि- “कांवड़ यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हमारे अधिकार क्षेत्र में, जो लगभग 240 किलोमीटर है, सभी ढाबों, होटलों और ठेलों को अपने मालिकों या दुकानदारों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए हैं।”
SSP साहब का क्या है मकसद?
SSP साहब के इस निर्देश के बाद से ही देश भर में इस बयान पर चर्चा शुरू हो गयी है। पक्ष-विपक्ष के नेताओं और देश की जनता ने इस फैसले की खूब आलोचना की है। जनता के एक वर्ग ने कहा कि SSP साहब जो कहना चाहते हैं, उसे समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। दुकानदारों द्वारा अपना नाम दुकान के आगे लिखना यह कोई राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला नहीं है। यह कहा जा सकता हैं कि यह आदेश स्पष्ट धार्मिक पहचान सामने लाने से संबंधित है। लेकिन मुद्दा यह है कि धार्मिक पहचान क्यों जरूरी है?
क्या धर्म के आधार पर बांटना सही?
यह जानना क्यों जरूरी है कि रास्ते में कौन सी दुकान किस धार्मिक समुदाय की है? क्या इसलिए कि किसी खास समुदाय का धार्मिक आधार पर ‘बहिष्कार’ किया जा सके? या किसी खास समुदाय को धर्म के आधार पर ‘अछूत या अस्पृष्ट’ घोषित किया जा सके? शिव-पार्वती की पूजा से जुड़ी इस कांवड़ यात्रा को धार्मिक विद्वेष का आधार बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है? सियासत का चेहरा और चरित्र तो समझ में आता है, लेकिन वह अफसर जिन्होंने संविधान की शपथ ली है और जो संघ लोक सेवा आयोग जैसी नामी और प्रतिष्ठित संस्था से चुने गए हैं, उनकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है, क्या उन्हें ऐसे आदेश देने चाहिए थे?
जनता ने सरकार से पूछे सवाल?
जनता ने सरकार से पूछा- ऐसा कौन सा धार्मिक उत्सव मनाया जा रहा है, जिसका प्रशासनिक संचालन नाजी जर्मनी के प्रशासन जैसा लग रहा है। वो नाजी जर्मनी जिसने यहूदियों की दुकानों, घरों और दूसरी इमारतों पर खास प्रतीक चिन्ह बनाए थे, ताकि उन्हें आसानी से निशाना बनाया जा सके। UPSC की परीक्षा पास करने वाले एसएसपी साहब ने जरूर पढ़ा होगा कि इस तरह के बहिष्कार का अंतिम नतीजा भी वही हो सकता है, जो नाजी जर्मनी में यहूदियों का हुआ था।
यूपी के बाद उत्तराखंड ने जारी निर्देश:
धार्मिक आधार पर दुकानों की पहचान कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि एक बड़े घेरे के अलग-अलग तार हैं। किसी की लंबाई (प्रभाव) कम होती है तो किसी की ज्यादा। अब पड़ोसी राज्य उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश की राह पर चल पड़ा है। यूपी की तरह अब उत्तराखंड ने भी कांवड़ यात्रा के चलते दुकानदारों को अपनी दुकानों पर अपना नाम लिखवाने के निर्देश दिए हैं।
कौन देगा इन सवालों के जवाब?
लेकिन दुकानों पर नाम लिखना तो समझ में आता है, लेकिन जरा सोचिए, अगर कोई चाय की दुकान है, तो सरकार उस पर मालिक का नाम लिखवाती है। इससे यह तो तय होता है कि चाय की दुकान का मालिक कौन है, लेकिन क्या आप यह तय कर सकते हैं कि चाय कौन बना रहा है? हमें कैसे पता चलेगा कि चाय के लिए कच्चा माल यानी चाय की पत्तियां चाय के बागान में कौन उगा रहा है? चीनी के लिए गन्ना कौन उगा रहा है? चीनी कारखाने का मालिक कौन है? वहां काम करने वाले कर्मचारी कौन हैं, उनकी धार्मिक पहचान क्या है? यह कैसे तय होगा?
‘यह हुनर नहीं, अभिशाप है’
इस भ्रम और भय को बोकर सत्ता की फसल काटने की योजना थी, जो विफल हो गई। लोगो ने कई राज्यों में दिखा दिया है कि भारत को हिंदू और मुसलमान में बांटने की रणनीति को सफल नहीं होने दिया जाएगा। लोगों ने यह संदेश भी दिया कि समाज को बांटने की क्षमता होना कोई हुनर नहीं बल्कि अभिशाप है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
खास बातें:
क्या है विवादित निर्देश?
मुजफ्फरनगर (UP) के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि- “कांवड़ यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हमारे अधिकार क्षेत्र में, जो लगभग 240 किलोमीटर है, सभी ढाबों, होटलों और ठेलों को अपने मालिकों या दुकानदारों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए हैं।”
योगी आदित्यनाथ ने क्यों लिया यह फैसला?
विभिन्न पक्षों की आलोचना के बाद मुजफ्फरनगर के स्थानीय प्रशासन ने अपने आदेशों में संशोधन किया। इसमें कहा गया है कि मालिकों के लिए खाद्य स्टालों पर अपना नाम प्रदर्शित करना वैकल्पिक है। हालांकि, योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को स्पष्ट आदेश दिया कि यात्रा मार्ग पर सभी दुकानों और ठेलों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित किया जाना चाहिए। जिसे कांवड़ यात्रियों की आस्था की पवित्रता बनी रहे।
क्या है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों के लिए एक वार्षिक तीर्थयात्रा है।
- इसे “जल यात्रा” या “कांवड़ यात्रा” भी कहा जाता है।
- यह यात्रा श्रावण महीने के पहले दिन शुरू होती है। आमतौर पर जुलाई या अगस्त में होती है।
- “कांवरिया” या “कांवड़िया” के नाम से जाने जाने वाले भक्त गंगा नदी से पवित्र जल लाने के लिए हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और बिहार के सुल्तानगंज जैसे हिंदू तीर्थ स्थानों पर जाते हैं।
- पवित्र जल उनके गृहनगर में शिव मंदिरों में चढ़ाया जाता है।
- 2024 की कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से 2 अगस्त तक चलने वाली है।
- सावन शिवरात्रि की तिथि 2 अगस्त को है।
योगी आदित्यनाथ:
योगी आदित्यनाथ एक भारतीय साधु और राजनीतिज्ञ हैं जो 19 मार्च, 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। वे भारतीय जनता पार्टी से हैं और सात वर्षों से अधिक समय से मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं, जिससे वे उत्तर प्रदेश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं।
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