Monday, December 23, 2024

Afghanistan: कैसे गंधार बन गया अफगानिस्तान का शहर कंधार, जानिए क्‍या है महाभारत के साथ इसका रिश्‍ता

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Afghanistan: अफगानिस्तान का कंधार शहर इतिहास में कई बार चर्चा में रहा है, लेकिन तालिबान के शासन के दौरान इसकी स्थिति और भी जटिल हो गई है, और वहाँ से बम धमाकों की आवाजें अक्सर सुनने को मिलती हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि आज का कंधार कभी “गांधार” के नाम से जाना जाता था और इसका महाभारत से भी एक जुड़ाव है?

KANDHAR
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आज हम आपको “गांधार” के बारे में जानकारी देंगे, जो अब अफगानिस्तान का कंधार कहलाता है, और इसके महाभारत के कथानक से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भों के बारे में बताएंगे।

Afghanistan

आज का कंधार अफगानिस्तान का एक महत्वपूर्ण शहर है, लेकिन वर्तमान में यह तालिबान के शासन के तहत आ चुका है और अक्सर विवादों में रहता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, कंधार प्राचीन भारत के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र का हिस्सा था, जिसे ‘गांधार’ के नाम से जाना जाता था।

Afghanistan: कैसे गंधार बन गया अफगानिस्तान का शहर कंधार, जानिए क्‍या है महाभारत के साथ इसका रिश्‍ता

पूर्वकाल में, यह शहर ‘क्वांधर’ के नाम से भी जाना जाता था, जो कि गांधार क्षेत्र के नाम पर आधारित था। हालांकि, तालिबान के प्रभाव के कारण कंधार की स्थिति अब काफी बदनाम हो चुकी है।

Afghanistan: इतिहास

कंधार का ऐतिहासिक महत्व हमेशा ही बड़ा रहा है, क्योंकि यह मध्य एशिया और भारत के बीच महत्वपूर्ण फ़ारसी मार्गों पर स्थित था। कंधार को 329 ईसा पूर्व में सिकंदर महान ने जीत लिया था, लेकिन 305 ईसा पूर्व में इसे यूनानियों ने चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। इसके बाद, कंधार को सम्राट अशोक ने अपने शिलालेख के माध्यम से महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया।

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7वीं सदी में यह क्षेत्र अरबों के नियंत्रण में आ गया और 10वीं सदी में ग़ज़नवी साम्राज्य का हिस्सा बन गया। लेकिन कंधार को चंगेज़ खान ने नष्ट कर दिया और इसके बाद तुर्क विजेता तैमूर ने भी इसे तहस-नहस कर दिया। अंततः, कंधार मुगलों के अधीन आया। उस समय के मुगल सम्राट बाबर ने यहाँ एक पहाड़ी पर 40 विशाल सीढ़ियाँ बनवायीं, जिन पर उनके महान विजय के विवरण वाले शिलालेख उत्कीर्ण किए गए। 1747 में, कंधार ने एकीकृत अफगानिस्तान की पहली राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित भूमिका निभाई।

Afghanistan: महाभारत काल से कनेक्शन

महाभारत काल में गांधार क्षेत्र अफगानिस्तान के वर्तमान इलाके में स्थित था, और आज भी उस प्राचीन नाम का एक शहर कंधार के रूप में जाना जाता है। यह नाम “गांधार” से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “सुगंधों की भूमि”।

यह शब्द प्राचीन ग्रंथों जैसे ऋग्वेद, महाभारत और उत्तर-रामायण में उल्लेखित है। इसके अलावा, सहस्त्रनाम के अनुसार, “गांधार” भगवान शिव के नामों में से एक है, और ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र के पहले निवासी शिव के भक्त थे।

Afghanistan: महाभारत और कंधार के बीच संबंध

गांधार साम्राज्य का क्षेत्र आज के पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, और उत्तर-पश्चिम पंजाब को शामिल करता था। महाभारत, जो ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखा गया एक संस्कृत महाकाव्य है, इसमें कौरव और पांडव राजकुमारों के बीच संघर्ष की कहानी वर्णित है।

महाभारत के अनुसार, लगभग 5500 वर्ष पूर्व गांधार पर राजा सुबाला का शासन था। राजा सुबाला की दो संतानें थीं—एक बेटी गांधारी और एक बेटा शकुनि। गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था, जो हस्तिनापुर साम्राज्य के राजकुमार और बाद में राजा बने।

Afghanistan: गांधार बना कंधार

महाभारत के अनुसार, गांधारी के सौ पुत्र थे, जिन्हें कौरव के नाम से जाना जाता था। ये कौरव पांडवों के साथ युद्ध के बाद भारी नुकसान का शिकार हुए। युद्ध के बाद, जो कौरव जीवित बचे, वे गांधार क्षेत्र में बस गए और धीरे-धीरे आज के सऊदी अरब और इराक की ओर चले गए।

गांधार क्षेत्र से शिव उपासकों की संख्या घटने और बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ, गांधार का नाम बदलकर कंधार हो गया। इसके अलावा, इस क्षेत्र पर चंद्रगुप्त, अशोक, तुर्क विजेता तैमूर और मुगल सम्राट बाबर जैसे प्रमुख शासकों का भी शासन रहा। ऐसा माना जाता है कि इन शासकों के किसी एक के शासनकाल में गांधार का नाम बदलकर कंधार रख दिया गया।

Afghanistan: गांधार देश की राजधानी

तक्षशिला, जो गांधार साम्राज्य की राजधानी थी, आज के रावलपिंडी के पास स्थित है। तक्षशिला को प्राचीन काल में शिक्षा और ज्ञान का केंद्र माना जाता था। हिंदू कथाओं के अनुसार, कौरवों की माता गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया था, जिसके परिणामस्वरूप द्वारका नगर समुद्र में डूब गया।

Afghanistan: कैसे गंधार बन गया अफगानिस्तान का शहर कंधार, जानिए क्‍या है महाभारत के साथ इसका रिश्‍ता इसके अलावा, गांधारी ने अपने भाई शकुनि को भी श्राप दिया, क्योंकि उसने अपने पुत्रों की मृत्यु के लिए शकुनि को श्रीकृष्ण के समान ही दोषी माना। गांधारी ने श्राप दिया कि “मेरे 100 पुत्रों की मृत्यु के जिम्मेदार गांधार नरेश को तुम्हारे राज्य में कभी शांति नहीं मिलेगी; यहाँ हमेशा संघर्ष और क्लेश का माहौल बना रहेगा।”

ऐसा माना जाता है कि गांधारी के इस श्राप के प्रभाव के कारण ही अफगानिस्तान में कभी भी स्थिरता और शांति का माहौल नहीं बन पाया।

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