बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह: सिख शौर्य की अमर गाथा
प्रारंभिक जीवन और व्यक्तित्व
बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था, लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण था। बचपन से ही वे निडर और फुर्तीले थे, और उनकी यह विशेषता जीवनभर बनी रही। बाबा बोथा सिंह विशेष रूप से उल्लेखनीय थे, क्योंकि उनका छह फुट ऊंचा कद और उग्र जोश से भरा रूप उन्हें और भी अद्वितीय बनाता था। उनके समय में, जब मुगल शासन अपने चरम पर था, सिख समुदाय को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।
मुगल शासन का आतंक और सिखों का प्रतिरोध
जैसे-जैसे समय बीता, परिस्थितियाँ और भी जटिल होती गईं। मुगलों ने सिख समुदाय को नष्ट करने के लिए अत्याचार की सभी सीमाएं लांघ दीं। जब नादरशाह और अहमद शाह अब्दाली ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया और लूटपाट की, तब उन्हें पंजाब में सिखों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इन लड़ाइयों में सिखों ने न केवल अपने साहस का परिचय दिया, बल्कि मुगलों से लूटा हुआ माल भी छीन लिया।
सिखों के सिर पर इनाम और अमृतसर में प्रतिबंध
इन घटनाओं से परेशान होकर, मुगल अधिकारी जकारियान खान ने खालसा को समाप्त करने के लिए सिखों के सिर पर इनाम रख दिया। उसने घोषणा की कि जो कोई भी सिखों का सिर लाएगा, उसे सरकार की ओर से इनाम दिया जाएगा। साथ ही, जकारियान खान ने यह भी दावा किया कि सभी सिखों का सफाया कर दिया गया है और अमृतसर में सिखों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई।
अत्याचारों का साक्षी और प्रतिरोध की योजना
ऐसे कठिन समय में, बाबा बोथा सिंह ने सिख समुदाय पर हो रहे अत्याचारों को अपनी आँखों से देखा। इसी बीच, बाबा गरजा सिंह नाम के एक अन्य सिख उनसे मिले। मुगल सरकार द्वारा किए जा रहे जुल्मों को देखकर दोनों मन ही मन क्षुब्ध हो गए। उस समय, सिखों के लिए स्थितियाँ अत्यंत कठिन थीं। वे रात में श्री हरमंदिर साहिब के दर्शन करते और दिन में जंगलों में छिपकर रहते थे।
दर्शन के लिए यात्रा और राहगीरों से सामना
इसी प्रकार, बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह भी श्री हरमंदिर साहिब के दर्शन के लिए निकल पड़े। जब वे तरनतारन के पास झाड़ियों में चल रहे थे, तो वहां से गुजर रहे दो राहगीरों को झाड़ियों से कुछ कदमों की आवाज और परछाईं दिखाई दी। उन्होंने सोचा कि यह चोर या कायर हो सकता है, क्योंकि उनके अनुसार सिख अब जीवित नहीं थे।
राहगीरों की प्रतिक्रिया और सिंहों का संकल्प
दोनों राहगीरों ने यह विचार किया कि अगर यह सिख होते, तो वे कभी छिपते नहीं, बल्कि सीधे मुकाबला करते। उनके इन विचारों को सुनकर बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह को अहसास हुआ कि यह सरकार का प्रचार है, जिससे सिखों की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा रहा है। इस स्थिति ने उन्हें और भी दृढ़ संकल्पित कर दिया।
चुंगी पर कब्जा और खालसा साम्राज्य की स्थापना
दोनों सिंहों ने गुरु पतिशाह की शरण ली और तरनतारन साहिब के पास नूरदीन की चुंगी पर शाही सड़क पर कब्जा कर लिया। उन्होंने इस सड़क से गुजरने वाली गाड़ियों से एक अन्ना और गधे से एक पैसा कर वसूलना शुरू कर दिया। इस कर खंड को खड़ा करके उन्होंने यह धारणा फैला दी कि यहाँ खालसा साम्राज्य स्थापित हो चुका है।
मुगल शासन को चुनौती
जब मुगलों का कोई दल उन तक नहीं पहुंचा, तो उन्होंने एक यात्री के माध्यम से लाहौर प्रांत को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने अपने अस्तित्व का प्रदर्शन किया और मुगल शासन को चुनौती दी। जब यह सूचना जकारियान खान तक पहुंची, तो उसने 200 सैनिकों का एक दस्ता भेजा।
बहादुरी का प्रदर्शन और शहादत
मुगल सैनिकों ने बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह को घेर लिया। बाबा बोथा सिंह ने मुगल सेना को चुनौती देते हुए कहा कि अगर वे खुद को बहादुर कहते हैं, तो एक-एक करके आकर हमसे लड़ें। दोनों सिंहों ने बहादुरी से लड़ते हुए एक दर्जन सैनिकों को मार गिराया। लेकिन अंततः, मुगल सेना के बाकी सैनिकों ने उन पर सामूहिक हमला कर दिया और 27 जुलाई 1739 को बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह शहीद हो गए।
बाबा बोथा सिंह और बाबा गरजा सिंह के बारे में दिलचस्प तथ्य:
- बाबा बोथा सिंह को सिख इतिहास में एक साहसी योद्धा के रूप में जाना जाता है।
- बाबा गरजा सिंह ने अपने जीवन में सामाजिक और धार्मिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया।
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