Eid al-Adha: बकरीद(Bakrid) मुस्लिम समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है। बकरीद रमजान खत्म होने के 70 दिन बाद मनाई जाती है। इसलिए यह त्यौहार इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हिज में मनाया जाता है। लेकिन इस ईद-उल-अजहा मनाने की कोई निश्चित तारीख नहीं है, चांद दिखने के बाद ही बकरीद मनाने की परंपरा है। इस बार बकरीद 17 जून, सोमवार को मनाई जा रही है।
बकरीद त्यौहार का इतिहास:
बकरीद(Bakrid) मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के बलिदान की कहानी है। हज़रत इब्राहीम ईश्वर में बहुत आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। फिर एक बार हजरत इब्राहिम को सपना आया कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं। सपने को एक संदेश के रूप में लेते हुए, वह अपने बेटे की बलि देने की पेशकश करता है। लेकिन जैसे ही भगवान बेटे की जगह जानवर की बलि देने का संदेश देते हैं, वैसे ही वह बेटे की जगह अपने प्यारे मेमने की बलि चढ़ाते हैं। इसे ‘बकरा-ईद’ कहा जाता है जिसका अर्थ है बकरीद। यही कारण है कि ईद-उल-अजा के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।
क्या है बकरीद त्यौहार की परंपरा?
कुर्बानी का प्रतीक बकरीद का त्योहार मुस्लिम समुदाय अकीदत के साथ मनाता है। इस दिन मुस्लिम भाई सुबह जल्दी उठकर नमाज के लिए जाते हैं। मुसलमानों के इस त्योहार पर उनके घरों में रखे या त्योहार से कुछ दिन पहले लाए गए बकरों की बलि देने की प्रथा है। बकरे की कुर्बानी देने के बाद इस मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए रखा जाता है और तीसरा हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। परिवार के सदस्य भगवान के इस प्रसाद को पकाकर खाते हैं और उत्सव को धूमधाम से मनाते हैं।