आप किसी राष्ट्र में महिलाओं की स्थिति देखकर उस राष्ट्र के हालात बता सकते हैं।
– पंडित जवाहरलाल नेहरू
Women Education: औरत केवल एक रूप नहीं होती बल्कि एक काया और हजारों माया होती है। उसके हर एक रूप में एक जादू होता है। चाहे वह रूप किसी की बेटी का हो या किसी की पत्नी का या किसी की मां का, उसका हर रूप अनोखा और संपूर्ण होता है। महिलाओं के बिना यह समाज अधूरा है और शिक्षा के बिना हम सब अधूरे है। आज इस लेख में हम महिला शिक्षा के इतिहास की यात्रा(Women Education In India) को समझेंगे, जिसके लिए हम इसे तीन भागों में विभाजित करते है।
प्राचीन काल:
प्राचीन भारत में महिला शिक्षा का इतिहास(Women Education In India) प्राचीन वैदिक सभ्यता से जुड़ा हुआ है। 3000 से अधिक वर्ष पूर्व महिलाओं को समाज में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, लड़कियां भी लड़कों के समान ही शिक्षा व पोषण की हकदार थी। इसके कुछ प्रमाण भी मौजूद है। उदाहरण के तौर पर वैदिक स्त्री शक्ति सिद्धांत के अनुसार, ज्ञान की देवी एक स्त्री ही है पुरुष नहीं, जिन्हें पूरी दुनिया ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के नाम से पूजती है।
वहीं, वैदिक समाज मातृसत्तात्मक था अर्थात बच्चो के नाम के पीछे माता का नाम लगाया जाता था। उदाहरण के लिए, हमारे त्रेता युग में राम को कौशल्या नंदन रामचंद्र के नाम से जाना जाता है। वहीं, द्वापर युग में कृष्ण को यशोदा के लल्ला के नाम से जाना जाता है। वहीं, पुरुष विवाह के बाद पत्नियों के नाम से भी जाने गए। क्रमशः रामचंद्र को हमेशा सियाराम और कृष्ण को राधा कृष्ण के नाम से सम्बोधित किया गया और वर्तमान में भी किया जाता है। हमारी परम्परा मातृशक्ति केंद्रित रही है।
रामायण महाभारत जैसे प्रतिष्ठित धर्म ग्रंथ भी स्त्री के सतीत्व पर आधारित है, जो ईश्वर के पछतावे पर समाप्त होते हैं। हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मो में भी मातृ शक्ति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। जैसे मुस्लिम धर्म ग्रंथ कुरान में भी नारी को सर्वोच्च मन गया है, यहां मां के कदमों के नीचे से जन्नत का रास्ता बताया गया है। वहीं सिख धर्म में गुरु नानक ने भी स्त्री बिना पुरुष के जीवन को अधूरा बताया गया है। वैदिक काल में लड़कियों के लिए उपनयन संस्कार अनिवार्य माना जाता था। वैदिक काल में पर्दा प्रथा, सती प्रथा जैसी कुप्रथा का अंश भी मौजूद नहीं था।
मध्यकाल:
वैदिक काल के बाद धीरे-धीरे उपनयन संस्कार बंद हो गए, जिसके कारण महिलाओं की शादी जल्द होने लगी। महिलाओं पर उनके परिवार द्वारा पुरुषों को अधिक अधिकार प्रदान किए जाने लगे। बाल्यकाल में पिता, युवाअवस्था में पति और बुढ़ापे में बेटे द्वारा उनकी रक्षा की जाने लगी। उनके जीवन की हर एक अवस्था एवं अस्तित्व की रक्षा का दायित्व पुरुष को सौंप दिया गया। जिससे महिलाओं का सम्मान धीरे-धीरे कम होने लगा। महिलाओं से वेदों की पढ़ने की अनुमति छिन ली गयी। यहां पर्दा प्रथा, बलविवाह, सती प्रथा आदि अस्तित्व में आने लगी।
“कहते हैं अगर दुनिया चार पहाड़ के नीचे पीस रही है, तो औरत पांच पहाड़ के नीचे पीस रही है और वह पांचवा पहाड़ है पुरुष सत्तात्मक विधान”
आधुनिक भारत:
आधुनिक भारत को दो अलग अलग समय क्रम के माध्यम से समझा जा सकता है। पहला ब्रिटिश भारत और दूसरा स्वतंत्र भारत..
ब्रिटिश भारत में अंग्रेजो द्वारा शिक्षा में सुधर को लेकर कुछ कदम उठाये गए, आल गर्ल्स बोर्डिंग स्च्होल की स्थापना 1821 में हुई। 1850 के दशक में मद्रास मिशनरियों ने कई लड़कियों का नामांकन स्कूलों में करवाया। ब्रिटिशो द्वारा जारी वुड डिस्पैच 1854 में महिला शिक्षा एवं रोजगार पर बल दिया गया। ब्रिटिशो द्वारा स्थापित बेथ्यून कॉलेज एशिया का सबसे पुराण कॉलेज है। 1882 में महिला साक्षरता दर 0.2% थी जो 1947 से बढ़कर 6% हो गयी थी।
अब भारत स्वतंत्र हो चूका था। स्वतंत्र भारत को तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होना था और किसी भी राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विकास में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसीलिए, स्त्री शिक्षा (Women Education In India) को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था।
स्वन्त्रता के बाद स्त्री शिक्षा की यात्रा:
1991 से 2001 की अवधि के दौरान महिला साक्षरता दर में 14.40% की वृद्धि हुई। जबकि पुरुष साक्षरता दर इस दौरान 11.3 प्रतिशत से बढ़ा है। यानी कि महिला साक्षरता दर में वृद्धि पुरुष साक्षरता दर से 3.33% अधिक थी।
Year/ female education(%)/ total
- 1951 8.86 18.33
- 1961 15.35 28.30
- 1971 21.97 34.45
- 1981 29.76 43.54
- 1991 39.21 52.21
- 2001 53.67 64.83
- 2011 65.46 74.04